Problem to Solution

मुनि आदित्य सागर जी महाराज प्रवचन में समझाते हैं कि जीवन की सबसे बड़ी पूंजी माता-पिता होते हैं।
बचपन से लेकर बड़े होने तक माता-पिता हर कदम पर संतान को सहारा और मार्गदर्शन देते हैं—जन्म से पहले और बाद, हर संघर्ष में वे साथ रहते हैं।

गर्भावस्था में माँ का त्याग, पिता की मेहनत, और संतान के बीमार होने पर रात-रात भर जागना—इन सबका ऋण जीवन भर भी नहीं चुकाया जा सकता। वे बताते हैं कि जैसे ही संतान को शादी, जॉब या पैसा मिलता है, अक्सर वह अपने माता-पिता से दूर होने लगती है।

ऐसा केवल सामाजिक बदलाव या पत्नी के कारण नहीं होता, बल्कि बेटे के बदलने से होता है; असली प्राथमिकता माता-पिता को होनी चाहिए। पिता के एक अनुरोध को भी टालना, या माँ-बाप की सेवा में देर करना, इन घटनाओं से परिवार के रिश्तों में दूरी आ जाती है।

उन्होंने वृद्धाश्रम के अनुभव साझा करते हुए बताया कि कई बड़े घर-परिवार के बुजुर्ग कहाँ पहुँचे—अपने ही बच्चों द्वारा अकेला छोड़ दिए गए।

उनका संदेश है:

  • “एक सफल इंसान की सफलता की जड़ उसके माता-पिता की जवानी है, न कि पत्नी”।
  • आस-पास की घटनाओं (जैसे कोरोना काल में बेटों द्वारा वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा) से सीखकर अपने जीवन में माता-पिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।

समाप्ति में मुख्य शिक्षा यह है:

  • अपनी उपलब्धियों का श्रेय सबसे पहले माता-पिता को दें
  • जीवन के हर मोड़ पर माता-पिता की सेवा, सम्मान और प्राथमिकता सबसे महत्वपूर्ण है
  • सही समय पर माता-पिता का आशीर्वाद और सेवा ही जीवन को सच्ची सफलताओं की ओर ले जाता है

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