
वक्त बनाने का रहस्य
मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में जीवन और समय के महत्व को समझाते हुए कहते हैं कि दुनिया





ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
ॐ Ignoray नमः
ॐ Deletay नमः
मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज दिगम्बर जैन धर्म के प्रख्यात संतों में से एक हैं, जिन्होंने सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्यागकर आत्मकल्याण और धर्मप्रभावना का महान मार्ग अपनाया। 24 मई 1986 को मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में जन्मे मुनि श्री ने सांसारिक जीवन में उच्च शिक्षा प्राप्त कर एम.बी.ए. की उपाधि अर्जित की, किंतु अध्यात्म के प्रति उनकी गहन रुचि ने उन्हें भौतिक जीवन से विरक्त कर दिया। 18 अक्टूबर 2008 को उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया और फिर 11 अगस्त 2011 को सागर (म.प्र.) में आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज से दीक्षा लेकर तप, संयम, स्वाध्याय और आत्मशुद्धि के पथ पर अग्रसर हुए।
मुनि श्री विद्वत्ता और साधना के अद्भुत संगम हैं। उन्हें संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, कच्छी और अंग्रेज़ी सहित 16 से अधिक भाषाओं का गहरा ज्ञान है। अब तक वे 170 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं और लगभग 37,000 संस्कृत-प्राकृत श्लोकों की सृजन-धारा प्रवाहित कर चुके हैं। उनकी रचनाएँ धर्म, दर्शन, आत्मशुद्धि, गुरु भक्ति और संयम जैसे गूढ़ विषयों को सरल भाषा में समाज के सामने प्रस्तुत करती हैं। अपने प्रभावी प्रवचनों और प्रेरक लेखन के माध्यम से मुनि श्री सत्य, अहिंसा, त्याग और साधना का संदेश जन-जन तक पहुँचा रहे हैं।
उनके जीवन का हर क्षण तप, त्याग और आत्मानुशासन का प्रतीक है। समाज के लिए वे प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक हैं। उनके आशीर्वाद से असंख्य लोग संयम और आत्मकल्याण की ओर अग्रसर हो रहे हैं। मुनि श्री द्वारा दिए गए महामंत्र आत्मजागरण और साधना की शक्ति को जागृत करने वाले हैं –
🔹 ॐ Ignoraay नमः |🔹 ॐ Deletaaya नमः

मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में जीवन और समय के महत्व को समझाते हुए कहते हैं कि दुनिया

मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में जीवन को एक खेल बताते हैं जहाँ व्यक्ति दो प्रकार का हो

मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में झूठी तारीफ से बचने की नसीहत देते हैं। वे कहते हैं कि
मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज के अमूल्य सूत्र, जो जीवन को संयम और साधना की ओर ले जाते हैं।
मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज जैन धर्म के महान संतों में से एक हैं, जिन्होंने
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"श्रुतसंवेगी महाश्रमण ससंघ अब कहाँ ? गुरुभक्तों का पुण्य जागेगा जहाँ।"
पट्टाचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी यतिराज के प्रज्ञावंत शिष्य श्रुतसंवेगी महाश्रमण श्री 108 आदित्यसागर जी ससंघ के
श्रुतसंवेगी का चल रहा है विहार, धन्य होंगे गली-गली घर द्वार। श्री आदित्य देशना प्रसारण केंद्र
इस विशेष संवाद में मुनि आदित्य सागर जी जैन धर्म के गूढ़ सिद्धांतों, अहिंसा, आत्मशुद्धि और कर्म सिद्धांत की व्याख्या करेंगे। जैन परंपरा, जो तिर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित हुई, मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है।
होस्ट: राघव शर्मा के साथ इस ज्ञानवर्धक चर्चा को अवश्य देखें और जैन दर्शन की गहराई को समझें