Muni Shri Aditya Sagar Ji: 16 भाषाओं के ज्ञाता , हजारों संस्कृत/प्राकृत श्लोक रचियता

Muni Shri Aditya Sagar Ji: अवतरण दिवस 24 मई पर विशेष :-

मुनिश्री आदित्यसागर जी, Muni Aditya Sagar Ji, Aditya Sagar

अपनी विद्वत्ता और तप के लिए पहचाने जाने वाले Muni Shri 108 Aditya Sagar Ji Maharaj प्रख्यात दिगम्बर जैन संत हैं।मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ सहित 16 भाषाओं का ज्ञान रखते हैं। वो लगभग 30,000 श्लोक प्रमाण संस्कृत ,प्राकृत में रचना कर चुके है । उन्होंने 170 से अधिक कृतियों की रचना की है। मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं। अभी हाल ही में इंदौर में आयोजित ऐतिहासिक पट्टाचार्य प्रतिष्ठा महोत्सव में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका से कोई अनभिज्ञ नहीं है । यह सब इनके गुरु के प्रति श्रद्धा व चरम वात्सल्य का परिचायक है ।

जैन ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखवाना

दिगंबर जैन मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज चातुर्मासिक प्रवचन से धर्म और संस्कारों की सीख देने के साथ-साथ जैन ग्रंथों को ताड़ पत्र पर लिखवाकर उनको आने वाली पीढ़ी के लिए सहजने का भी काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि सामान्य कागज और स्याही अधिकतम 100 से 200 साल में खराब हो जाते हैं लेकिन ताड़ पत्र लिखा हुआ हजारों सालों तक खराब नहीं होता। इसलिए ये ग्रंथ ताड़ पत्र पर लिखे जा रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए हजारों-हजारों साल तक ग्रंथ सुरक्षित रह सके। क्योंकि ग्रंथ हमेशा मार्गदर्शक होते हैं।

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मुनि श्री ने बताया कि ताड़ पत्र दक्षिण भारत के साथ ही श्रीलंका में बहुतायत में मिलते हैं। इन पत्तों पर लंबी-लंबी लाइने होती हैं। इस कारण इन पर अक्षरों को लिपिबद्ध कर सकते हैं। ताड़ पत्र पर मशीन के साथ-साथ हाथ से भी लिखा जाता है। अब तक कई ग्रंथ प्रिंट करवा चुके हैं। इनको पूरे देश में अलग-अलग जगह रखवा रहे हैं ताकि कोई भी व्यक्ति जब भी चाहे इनको देख और पढ़ सकते हैं। भीलवाड़ा , इंदौर , कोटा के चातुर्मास के दौरान उन्होंने कई ग्रंथों का प्रकाशन किया।
एक ग्रंथ करीब 200 सीट पर लिखा गया। एक सीट करीब 2 किलो की है। पूरे ग्रंथ का वजन करीब 400 किलो है। कई ग्रंथों की अभी प्रीटिंग चल रही है।

25 वर्ष की उम्र में मुनि दीक्षा

आपका जन्म 24 मई 1986 को मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। आपने गृहस्थ जीवन में बाल बह्मचारी सन्मति भैया के रूप में एमबीए की पढ़ाई – गोल्ड मेडल के साथ करने के बाद ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर सांसारिक सुखों को त्याग दिया | आदित्य सागर जी महाराज जी को 08 नवम्बर 2011 में सागर में 25 वर्ष की आयु में आचार्य विशुद्ध सागर जी ने दीक्षा दी जो आचार्य विराग सागर जी के पट्टाचार्य है

संस्कार, धर्म और अध्यात्म जरूरी

मुनिश्री बताते हैं कि जेनत्व सबसे प्राचीन है। इस आधुनिक युग में डिग्री जरूरी है लेकिन केवल डिग्रियों से कोई काम नहीं कर सकता। प्राचीनता में ही आनंद है। वर्तमान पीढ़ी पैसे की तरफ भाग रही है। पैसा कुछ हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं है। वर्तमान पीढ़ी पैसे के साथ-साथ संस्कार, धर्म और आध्यात्मिकता की ओर आती है तो उनका जीवन सार्थक हो सकेगा। इनका वात्सल्य पूर्ण व्यवहार जन जन को अपनी और खींच लेता है ।

गुरुदेव मुनि श्री आदित्य सागर जी के श्री चरणों में बारम्बार नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु

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