मुनिश्री १०८ अप्रमितसागर जी महाराज – जीवन परिचय

Muni Sangh

मुनिश्री १०८ अप्रमितसागर

• जन्म - 12 march 1984 डबरा, मध्यप्रदेश
• पूर्व नाम: बा.ब्र. रोहित जैन
• पिता श्री/ माता श्री: श्री सुरेशचंद्र जी जैन, श्रीमती प्रभादेवी जैन
• शिक्षा: एम.एस.सी. (आई.टी.)
• मुनि दीक्षा: ८ नवम्बर २०११, मंगलगिरि तीर्थ, सागर (म.प्र.)

श्रुतप्रिय श्रमणरत्न मुनिश्री १०८ अप्रमितसागर जी महाराज का जीवन साधना, श्रुत-भक्ति और गहन अध्ययन का अनुपम संगम है। गहन अध्यात्मिक चिंतन और साहित्य-सेवा में आपका योगदान आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आप न केवल तप और संयम के प्रतीक हैं, बल्कि ज्ञान के अपार भंडार और प्राकृत साहित्य के संवाहक भी हैं। आपकी सरलता, विनम्रता और काव्य रचना की अद्भुत क्षमता ने आपको श्रद्धालुओं के हृदय में विशेष स्थान दिया है।

१२ मार्च १९८४ को मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के डबरा नगर में आपका जन्म हुआ। जन्म के समय आपका नाम बा.ब्र. रोहित जैन रखा गया। पिता श्री सुरेशचंद्र जी जैन और माता श्रीमती प्रभादेवी जैन की संस्कारमयी छत्रछाया में आपने अपना बचपन बिताया। शिक्षा में भी आप सदैव अग्रणी रहे और सूचना प्रौद्योगिकी (I.T.) विषय में M.Sc. की उपाधि प्राप्त की। लेकिन लौकिक शिक्षा और जीवन की उपलब्धियों के बावजूद आपके हृदय में आध्यात्मिकता और आत्म-कल्याण की साधना प्रमुख रही।

आपने २ नवम्बर २००९ को अशोक नगर (म.प्र.) में आचार्य श्री १०८ विशुद्धसागर जी महाराज के सान्निध्य में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। इसके बाद ८ नवम्बर २०११ को सागर जिले के मंगलगिरि तीर्थ पर आचार्य श्री के करकमलों से मुनि दीक्षा ग्रहण की और आप पूज्य मुनिश्री १०८ अप्रमितसागर जी महाराज के रूप में विख्यात हुए।

आज आपकी मातृभाषा हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी, संस्कृत, प्राकृत और प्राचीन ब्राह्मी लिपि में भी गहरी पकड़ है। आपकी साहित्य-सेवा और रचनात्मकता का प्रमाण है कि अब तक आपने लगभग १०,००० श्लोक प्रमाण प्राकृत रचनाएँ की हैं। आपकी काव्य प्रतिभा और श्रुत-प्रेम हर साधक और श्रद्धालु के लिए मार्गदर्शन का दीपक है।

मुनिश्री १०८ सहजसागर जी महाराज – जीवन परिचय

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मुनिश्री १०८ सहजसागर जी

• जन्म : १३ नवम्बर १९७९, श्योपुर (मध्यप्रदेश)
• पूर्व नाम : बा.ब्र. अंकुर भैया
• शिक्षा : बी.एस.सी., एम.ए.
• मुनि दीक्षा : २९ अगस्त २०१५, भीलवाड़ा (राजस्थान)
• दीक्षा गुरु : प. पू. पट्टाचार्य श्री विशुद्धसागर जी यतिराज

सहजानंदी श्रमणरत्न मुनिश्री १०८ सहजसागर जी महाराज का जीवन त्याग, साधना और अध्यात्म का अनुपम उदाहरण है। लौकिक सुख-सुविधाओं और विद्या प्राप्ति के बाद भी आपने आत्मकल्याण और मोक्षमार्ग को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया। आपकी शांत और सहज प्रवृत्ति ने आपको श्रद्धालुओं के बीच “सहजानंदी श्रमण” के रूप में विशेष पहचान दी है।

 

१३ नवम्बर १९७९ को मध्यप्रदेश के श्योपुर नगर में आपका जन्म हुआ। आपका पूर्व नाम बा.ब्र. अंकुर भैया था। आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात् विज्ञान और कला दोनों क्षेत्रों में गहन अध्ययन किया तथा B.Sc. और M.A. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। परन्तु सांसारिक उपलब्धियों से संतोष न करके आपने संयम पथ की ओर कदम बढ़ाया।

 

२९ अगस्त २०१५ को राजस्थान के भीलवाड़ा में आपने पूज्य पट्टाचार्य श्री १०८ विशुद्धसागर जी महाराज के सान्निध्य में दीक्षा धारण की और तब से आप मुनिश्री १०८ सहजसागर जी महाराज के रूप में विख्यात हुए। आपकी सरलता, मधुर वाणी और गहन ज्ञान आज हजारों श्रद्धालुओं को धर्ममार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में निपुण हैं, जिससे आप शास्त्रों के गहन अध्यन और प्रवचन के माध्यम से जनमानस को सहजता से धर्मोपदेश प्रदान करते हैं।

क्षुल्लक श्री श्रेयससागर जी महाराज – जीवन परिचय

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क्षुल्लक श्री श्रेयससागर जी

• जन्म दिनांक : १५ सितम्बर १९५८ ( मध्यप्रदेश)
• पूर्व नाम : श्री जितेन्द्र कुमार जैन (मुज्जा)
• पिता श्री / माता श्री: : श्री प्रेमचंद जी जैन (बब्लू), श्रीमती आशारानी जैन
• लौकिक शिक्षा : बी.कॉम
• क्षुल्लक दीक्षा: २२ फरवरी २०२४, अलीराजपुर (म.प्र.)
• दीक्षा गुरु : प. पू. आचार्य श्री १०८ विशुद्धसागर जी महाराजश्री

श्रेयस मार्गी तपस्वी क्षुल्लक श्री १०८ श्रेयससागर जी महाराज का जीवन त्याग और संयम का अनुपम उदाहरण है। पारिवारिक जीवन और सामाजिक उत्तरदायित्वों को सफलतापूर्वक निभाने के बाद आपने आत्मकल्याण और धर्म साधना को अपने जीवन का ध्येय बनाया। गहन श्रद्धा, निष्ठा और आध्यात्मिक शक्ति के बल पर आपने सांसारिक जीवन से विरक्ति लेकर संयम मार्ग को अपनाया।

 

१५ सितम्बर १९५८ को आपका जन्म मध्यप्रदेश में हुआ। आपका पूर्व नाम श्री जितेन्द्र कुमार जैन (मुज्जा) था। आपने वाणिज्य संकाय से बी.कॉम की शिक्षा प्राप्त की। सांसारिक जीवन में आपके परिवार में पत्नी, संतान, भाई-बहन सभी रहे और आपने धर्म व संस्कारों से परिपूर्ण जीवन जिया।

 

संसार से विरक्ति के पश्चात आपने ब्रह्मचर्य प्रवेश २०१४ में श्रीफलासी श्रवणमंगल में किया। इसके बाद १० जनवरी २०१५ को सीमाधन प्रकरण और २ फरवरी २०२३ को विजयवर्गीय, बड़वानी में आपने पुनः ब्रह्मचर्य जीवन को सुदृढ़ किया। अंततः २२ फरवरी २०२४ को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर में आपने पूज्य प.पू. आचार्य श्री १०८ विशुद्धसागर जी महाराज की पावन सन्निधि में मुनि दीक्षा धारण की।

 

आज आप अपने प्रवचनों, साधना और प्रेरणादायी जीवन से अनेकों को संयम, त्याग और धर्ममार्ग की ओर अग्रसर कर रहे हैं।

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