श्रुतसंवेगी महाश्रमण श्री 108 आदित्यसागर जी मुनिराज के मानस पटल में राष्ट्र एवं धर्म की उन्नति का एक ऐसा वृक्ष पल्लवित हो रहा है जिसकी शाखाएँ लोक कल्याण, युवा उत्थान, धर्म जाग्रति, इतिहास संरक्षण, करुणा एवं एकता के रूप में फैली हुई हैं।
जो युवा जिनशासन के यश आकाश में सम्यक प्रभावना के नव-नक्षत्र गढ़ रहे हैं, जो युवा अपने प्रयासों से, कार्यों से, कला से, शिक्षा से, साधना से अथवा साहस से “शाश्वत श्रमण संस्कृति” के अप्रमित वैभव को वर्धमान कर रहे हैं, ऐसे “जिनशासन के अदृश्य स्तंभों” को सम्मान, प्रोत्साहन एवं साहस देने का नाम है – जिआ।
JIA एक क्रांति है, सुप्त हो रही युवाशक्ति को उठाने की,
JIA एक क्रांति है, जिनशासन के परचम को लहराने की,
JIA एक क्रांति है, साहस, एकता, सद्भावना जगाने की,
JIA एक क्रांति है, भारत को पुनः “विश्व गुरु” बनाने की।