मुनि आदित्य सागर जी महाराज प्रवचन में बताते हैं कि हमारा व्यक्तित्व और जीवन हमारे अपने सुधार पर निर्भर है, न कि दूसरों पर।हर व्यक्ति को चाहिए कि वह दूसरों के सुधार में समय खर्च करने की बजाय पहले खुद के सुधार पर ध्यान दे।
दुनिया में बहुत से लोग दूसरों की खामियाँ देखकर उन्हें नीचा दिखाना चाहते हैं, यह मानसिकता खुद की कमजोर सोच को दर्शाती है।
मौजूद हालात चाहे कैसे भी हों, हमें अपने नजरिए (पॉइंट ऑफ़ व्यू) को सुधारना होता है, क्योंकि विचार ही व्यक्तित्व के स्रोत होते हैं।विचारों में सुधार से ही हमारे व्यवहार और व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव आता है, जो जीवन में सफलता और शांति देता है।
वे उदाहरण देते हैं कि एक पक्षी जब अपना घर बनाने जाता है, तो कुछ पेड़ उसे स्थान देने से मना कर देते हैं क्योंकि वे जान चुके होते हैं कि उनकी जड़ें कमजोर हैं, और अंततः वे गिर जाते हैं।
यह दर्शाता है कि हमें दूसरों के नजरिए को समझना चाहिए और दूसरों के दृष्टिकोण से सोचने के लिए तैयार रहना चाहिए, इससे हमें वास्तविकता का ज्ञान होता है।
मुनि श्री कहते हैं कि हमारा नजरिया सुधारें, क्योंकि गलत नजरिया हमे गलत निष्कर्षों पर ले जाता है, जिससे विचार और कार्य दोनों प्रभावित होते हैं।
वे बताते हैं कि बाहर के माहौल और घटनाओं को देखकर सोच बदल जाती है और यह सोच कई बार संकीर्ण या गलत होती है, जैसे नेता या सामाजिक विषयों को लेकर। लेकिन हमें स्थायी रूप से सोच को बड़ा करना है, सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना है और अपने भीतर के व्यक्तित्व को सुधारना है।
सफलता या लोकप्रियता कपड़ों या दिखावे में नहीं बल्कि विचारों और चिंतन में होती है।
भगवान महावीर स्वामी, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महापुरुषों ने अपनी विचारधारा और चिंतन को ही महत्व दिया, जो उनकी महानता का आधार था।
अंतिम संदेश है:
- दूसरों के सुधार की चिंता छोड़कर अपने विचार सुधारें
 - अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें, जो आपकी सोच का परिणाम है
 - इस प्रकार आप जीवन में वास्तविक सफलता, सम्मान, और शांति प्राप्त कर सकते हैं
 - एक व्यक्ति सुधर जाए तो दुनिया खुद बेहतर हो जाएगी।