वक्त बनाने का रहस्य

मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में जीवन और समय के महत्व को समझाते हुए कहते हैं कि दुनिया किसी की नहीं है, वक्त जिसका है वो दुनिया उस का होता है।वक्त के अनुसार हर व्यक्ति की स्थिति बदलती रहती है — कभी राम की जय होती है तो कभी उसकी निंदा होती है, कभी रावण के जयकारे होते हैं तो कभी विभीषण के। यही प्राकृतिक नियम है कि वक्त का मालिक वही होता है जिसकी सोच, कर्म और पुरुषार्थ मजबूत होता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि जब वक्त खराब होता है, तो अपने भी साथ छोड़ देते हैं और जब वक्त अच्छा होता है, तो वही लोग साथ देते हैं। इसलिए दूसरों को अपना बनाने के बजाय खुद वक्त को अपना बनाने की सीख दी गई है।

अच्छा वक्त आपके अच्छे कर्मों, सोच और संगति से बनता है। जैसा आप सोचेंगे, वैसा फल प्राप्त होगा। लालच और स्वार्थ से जीवन में विपरीत परिणाम आते हैं।

मुनि श्री एक माता और बेटे के उदाहरण से समझाते हैं कि बचपन में बच्चों को धार्मिक और नैतिक शिक्षा देते रहना चाहिए। अगर मां धार्मिक शिक्षा दे तो बच्चे वृद्धावस्था में अपनी मां का सम्मान करते हैं, लेकिन यदि केवल भौतिक शिक्षा दी जाएगी तो वृद्धावस्था में बच्चे मां का ध्यान नहीं रखेंगे।

इससे यह स्पष्ट होता है कि अच्छे संस्कारों और सही सोच का महत्व जीवन में अत्यंत है।

उन्होंने बताया कि वक्त को दोष देना उचित नहीं, बल्कि अपने कर्मों का आत्मावलोकन करें। जो कर्म किए गए हैं, उनका फल ही मिलेगा। इसलिए वर्तमान कर्मों पर ध्यान देना और सुधार करना जरूरी है।

जैसे राम और सीता की कथा में सीता का अपहरण राजाओं या रावण के कारण नहीं, बल्कि उसके स्वयं के कर्मों के कारण हुआ था, वैसे ही जीवन में समय का दुरुपयोग या कष्ट आपके कर्मों का प्रतिफल है।

अंत में मुनि जी कहते हैं कि

  • वक्त किसी का भी नहीं, वह तो कर्मों का फल है
  • वक्त को दोष न दें, बेहतर करें
  • कठिन समय में धैर्य रखें और सुधार करें
  • समय की कद्र करें और मेहनत से बेहतर समय बनाएं
  • अच्छे कर्मों से जीवन में सुख और सफलता पाएंगे

यह प्रवचन हमें स्वीकारोक्ति, कर्मों की जिम्मेदारी लेने, और समय के महत्व को समझकर सही दिशा में चलने की प्रेरणा देता है।

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