मुनि आदित्य सागर जी महाराज इस प्रवचन में जीवन को एक खेल बताते हैं जहाँ व्यक्ति दो प्रकार का हो सकता है — दर्शक या खिलाड़ी।दर्शक केवल परिस्थिति को देखता है, ताली बजाता है, लेकिन खिलाड़ी मैदान में उतरकर खेलता है, मेहनत करता है और अंततः जीतता है।
सफलता, आत्मिक संतुष्टि, नाम और सम्मान खिलाड़ी को मिलते हैं, दर्शक को नहीं।
वे कहते हैं कि लोग हमेशा आसान रास्ता चुनते हैं, पर कठिन मार्ग ही व्यक्ति को मजबूत बनाता है।
कठिनाईयों का सामना करना और कठोर परिश्रम करना ही असली खिलाड़ी की पहचान है।
उदाहरण देते हैं कि एक युवा जिसने कम वेतन को चुना और मुश्किल काम किया, उसने 2 साल के अंदर बड़ा अनुभव पाया जिससे बाद में उसे बड़ी सैलरी वाली नौकरी मिली।
यह स्पष्ट करता है कि मेहनत और सही समय पर सही विकल्प चुनना भविष्य बनाता है।
मुनि श्री साहसिका भी देते हैं कि भले ही परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हार मानना नहीं चाहिए। वे एक चीते की कहानी बताते हैं, जो मगरमच्छ से लड़कर बच निकलता है क्योंकि उसने हिम्मत नहीं छोड़ी।
समापन में वे कहते हैं कि
- जीवन की खेल में जितना आप खेलेंगे, उतना जीतेंगे; डरेंगे तो हारेंगे।
- इसलिए, डर से दूर रहें, मेहनत करें और हमेशा खिलाड़ी बनिए, दर्शक नहीं।
यह नीति प्रवचन उन सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है जो जीवन में सक्रिय रूप से संघर्ष करना और सफल होना चाहते हैं।